Apart from switching off the power supply during floods, better measures are needed, read the hindu editorial of January 1 | The Hindu हिंदी में: बाढ़ के दौरान पावर सप्लाई बंद करने के अलावा बेहतर उपायों की जरूरत है, पढ़िए 1 जनवरी का एडिटोरियल


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12 मिनट पहले

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साइक्लोन मिचौंग को आकर गए हुए कई दिन बीत गए हैं, लेकिन चेन्नई में रहने वाले लोग उनके लिए किये गए फैसले का असर अब भी महसूस कर रहे हैं । इन सभी फैसलों के अपने प्रभाव थे और इसलिए इन फैसलों पर विचार करना जरूरी है। कुछ फैसलों का असर सामने है और दिखाई दे रहा है और कुछ परिणाम छुपे हुए और जटिल हैं।

2015 की बारिश में, सबका यही मानना था कि पानी को जलाशयों में रोकने का विकल्प सही है,जब तक कि उसे अचानक बिना किसी चेतावनी के वापस छोड़ना नहीं पड़ा और इस फैसले का प्रभाव बहुत खतरनाक निकला।

बिना बिजली वाले घर में खतरा ऐसे हिस्से जहां साइक्लोन बिजली सप्लाई को प्रभावित कर सकती है और बिजली के तारों को गिरा सकती है, वहां बिजली की सप्लाई को बंद करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

इसका एक ओर पहलू है, ये तब अच्छा विकल्प हो सकता है, जब इसे एक सुरक्षा के लिए सही फैसले की तरह देखा जा रहा हो और बड़े हिस्से में इस फैसले को लागू किया जा रहा हो।या साइक्लोन की वजह से प्राकृतिक घटनाएं और एक्सीडेंट हो रहे हों, तब बिजली सप्लाई को बंद करना अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन अंधेरे में डूबे ये हिस्से खतरनाक हो सकते हैं।

यह चिंता का मुद्दा है कि कोई बुजुर्ग, कोई सदस्य अंधेरे में घायल हो सकता है, क्योंकि बगैर बिजली सप्लाई के रहना दिल का दौरा पड़ने जितना ही जानलेवा हो सकता है।

कई लोग अकेले या कुछ लोगों की मदद पर रहने को निर्भर हैं। ऐसे में बिजली सप्लाई में रुकावट एक महत्वपूर्ण खतरा है।इसके साथ घरों में बिजली न होना सुरक्षा से जुड़ी चिंता भी है। अंधेरे में दुर्घटना और चोट लगने की संभावना ज्यादा होती है।

अंधेरे में आसान काम भी कठिन और खतरनाक हो जाते हैं। सांप और कीड़े घर में रेंग सकते हैं और बदमाश भी घर में घुस सकते हैं।साइक्लोन के दौरान बिजली की आपूर्ति बंद करने और बारिश रुकने के बाद भी इसे वैसे ही बनाए रखने के लिए ऊपर बताई गई मुश्किलों के साथ देखा जाना चाहिए।

यहां कोई ‘सुरक्षित’ विकल्प नहीं है। यह एक लगातार किए जाने वाला काम है और इसलिए फैसले लेने वालों को उनके द्वारा चुने गए विकल्पों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।किसी भी मुश्किल में फैसला लेना भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण और मनोवैज्ञानिक रूप से तनावपूर्ण हो सकता है।

जब इन फैसलों का पैमाना बड़ा होता है, और जब आपदा सब कुछ खत्म करने वाली होती है,तो ये फैसला समझ और विश्लेषण के साथ-साथ व्यक्तिगत ताकत और आत्मविश्वास की भी एक परीक्षा बन जाता है।ऐसे समय में फैसला लेने वाले के दिमाग में गलतियों की संभावना ज्यादा होती है, जो अक्सर व्यक्ति की सोच पर ज्यादा निर्भर करती है।

इस तरह के फैसलों में दूसरे पक्ष के लिए उतना नहीं सोचेंगे और इस वजह से होने वाले खतरे गंभीर (भले ही कम नाटकीय) मुश्किलों को जन्म दे सकते हैं।तूफान की स्थिति में बिजली की आपूर्ति बंद करना जीवन को बचाने वाला हो सकता है, मगर जीवन बचाने और भयानक परिणामों से सुरक्षा के लिए तुरंत आपूर्ति बहाल करना भी जरूरी है।

फैसले का औचित्य जरूरी एक नौकरशाह या सरकारी कर्मचारी जिसे किसी क्षेत्र, पड़ोस, सड़क, या छोटे क्षेत्र/घर में बिजली आपूर्ति बंद करने का निर्णय लेने की जिम्मेदारी दी गई है, उसे वास्तविक समय में निर्णय को मजबूत साबित करने और कारणों को बताना चाहिए।

फैसले की स्थिति में जिस तरह टूटी केबल वाले क्षेत्रों में समय से पहले बिजली बहाल करने से बिजली के झटके और बुनियादी ढांचे को नुकसान होने का खतरा होता है, उसी तरह बिजली कटौती के बेवजह ज्यादा लंबा रखने से घरों में हजारों लोगों के लिए मौत जोखिम भी है।

प्राकृतिक आपदा जैसे असाधारण रूप से कठिन समय में मुश्किल विकल्प चुनना एक चुनौती है, जो दिमाग को सुन्न कर सकती है और विशेषज्ञों ने उन्हें लगातार तारीफ, कृतज्ञता और सम्मान करने का काम सौंपा है। कुछ लोग मुश्किल फैसले लेने के समय में ज्यादा पारदर्शिता से बचने के लिए धोखे वाले तर्क देते हैं।

लेकिन साफ तौर पर, उनके खास (और यहां तक कि गोपनीय) फैसले को देखते हुए, ऐसा कोई भी फैसला विशेषज्ञों और मामले से जुड़े विषय-वस्तु विशेषज्ञों के पास में ही होना चाहिए।एक मुश्किल बात को कभी भी सस्ते लोकलुभावनवाद की प्रतियोगिता नहीं बनने दिया जाना चाहिए।

2015 में बाढ़ के दौरान उस तरह के फैसले की यादें अभी भी हमारे जहन में ताजा हैं। साझा जिम्मेदारी के बारे में सोचें फिर भी ये किसी एक बड़े वर्ग का मामला नही है, जहां सभी फैसले ऊपर से होते हैं।

एक मजबूत लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या समूह के पास ऐसे विकल्पों पर आजादी और शक्ति नहीं होनी चाहिए या उन्हें अपनी सनक पर कुछ भी फैसला करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अब इस तरह के फैसले लेने वालों को जवाबदेह बनाने का समय आ गया है। खासकर तब जब उनका फैसला लाखों लोगों को प्रभावित करता है।

एक ‘आदर्श समाधान’ कभी भी पूरी तरह लागू नहीं हो सकता है, लेकिन हमें इसके लिए कोशिश करना चाहिए। प्रभावित हिस्से के अनुसार ‘जनसंख्या के आधार पर’ फैसला लेने वाली सेल तेज और बेहतर होनी चाहिए। तेजी से बदलती परिस्थितियों को पूरा करने के लिए फैसला तेजी से लागू किया जाना चाहिए। जब बड़े फैसले लेने की बात आती है, तो एक से ज्यादा लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।

संकट के समय में, एक टीम रिव्यू द्वारा हर कुछ घंटों में की जाने वाली समीक्षा, चुनौती देने और जिन फैसलों में कुछ कमी है उन विकल्पों को उलटने में मदद कर सकती है।

सभी तरह की एक्सपर्टीज के बावजूद, सिद्धांत यह है कि किसी विकल्प या प्राथमिकता के समर्थन में निर्णय लेने वाले के तर्क और सबूत को देखा जाना चाहिए।यदि फैसला बचाव में काम नहीं आता है, तो ऐसे फैसले को जल्दी ही पलट दिया जाना चाहिए या उसमें सुधार किया जाना चाहिए।

जिम्मेदारी पूरी तरह से उन व्यक्तियों पर तय की जाती है जो ऐसे कदम उठाते हैं, यहां तक कि उन्हें भविष्य में ऐसे निर्णय लेने वाले पदों से भी बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। जबकि बेहद गंभीर स्थिति में बिजली की आपूर्ति बंद करना जीवन रक्षक हो सकता है, वहीं, बिना देरी के बिजली बहाल करने से भी कई लोगों की समस्याओं को टालने में मदद मिल सकती है।

लेखक: डॉ. मणि शिवसुबरमण्यम

स्रोत: हिन्दू



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