What will change in Kashmir due to the ban on Muslim League Jammu and Kashmir (MLJK) and Jamaat-e-Islami, read The Hindu article of 31 December. | The Hindu हिंदी में: मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर (MLJK) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध से कश्मीर में क्‍या बदलेगा, पढें 31 दिसंबर का आर्टिकल


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  • मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर (एमएलजेके) और जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध से कश्मीर में क्या बदलेगा, पढ़ें 31 दिसंबर का हिंदू आर्टिकल.

17 मिनट पहले

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दशकों से जम्मू-कश्मीर की सड़कों पर मुस्लिम लीग के नेता भारत विरोधी प्रदर्शन करते रहे हैं। 2008 तक, जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी मुस्लिम लीग के प्रमुख मसरत आलम भट, कई सालों की गुमनामी के बाद 2008-09 में सुर्खियों में आए जब हथियार बंद विरोध, आंदोलनकारी राजनीति में तब्दील हो गया।

भट पिछले हफ्ते फिर सुर्खियों में आए, जब उनकी पार्टी को आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक शासन को बढ़ावा देने / स्थापित करने के लिए लोगों को उकसाने के आरोप में UAPA के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया।

जहां जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासिन मलिक, हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक जैसे अन्य शीर्ष अलगाववादी नेताओं को राजनीति में अपनी जगह बनाने में कई साल लगे, वहीं दूसरी तरफ भट तेजी के साथ उभरे। माना जाता है कि, 2008 में अमरनाथ धर्मक्षेत्र को दी गई जमीन को लेकर हुए विवाद में भट का हाथ था । इसके बाद कश्मीर घाटी में कई उग्र प्रदर्शन हुए।

भट ने ‘आयी आयी आजादी’ जैसे गानों का प्रचार किया और बड़े स्तर पर भारत विरोधी प्रदर्शनों को भड़काया। उन्होंने भारत विरोधी प्रदर्शनों के संचालन के लिए एक कैलेंडर जारी किया, जिसमें दिन और तारीख बताई गई कि रोजमर्रा की चीजों को खरीदने के लिए कब दुकानें खुली और बंद रहेंगी। सुरक्षा बलों को इन विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए बल का प्रयोग करना पड़ा। इस कारण 2008 से 2010 के बीच लगभग 200 लोगों की जान चली गई।

कुपवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा तैयार किए गए एक दस्तावेज में, भट को एक अलगाववादी के रूप में दिखाया गया था, जो माहौल में अशांति और अराजकता का वातावरण तैयार करने की उनकी सोच/ विचारधारा को दर्शाता है। इस दस्तावेज में यह भी लिखा था कि इन विरोध प्रदर्शनों से सामान्य जन-जीवन पर असर पड़ा। साथ ही, रोजमर्रा की आवश्यक चीजों, चिकित्सा सुविधाओं और व्यावसायिक गतिविधियों में अड़चने आईं। आलम भट के इन प्रदर्शनों से शिक्षा संस्थानों का काम करना मुश्किल हो गया और राज्य में कानून व्यवस्था ठप्प हो गयी।

1971 में भट का जन्म श्रीनगर के जैनदार मोहल्ले के एक अमीर कपड़ा व्यापारी के घर में हुआ। उन्होंने टायंडेल बिस्को नाम के प्रतिष्ठित ईसाई मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की, जिसका नाम एक ब्रिटिश मिशनरी और शिक्षक के नाम पर रखा गया था।

पहली गिरफ्तारी
2 अक्टूबर, 1990 को पहली बार पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के समय उनकी उम्र 19 साल थी। भट इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग में शामिल हो गए, जो कश्मीर में 1979 की ईरानी क्रांति की नकल करना चाहते थे। तीन महीने के लिए हिजबुल्लाह आतंकवादी संगठन में शामिल होने के बाद उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया। रिहाई के बाद उन्होंने मुस्लिम लीग की स्थापना की।

2010 में, सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उनपर राजद्रोह का आरोप लगा। उन्होंने एक वीडियो संदेश के जरिये सुरक्षा बलों से कश्मीर छोड़ने का आग्रह किया। तब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद द्वारा 1 मार्च, 2015 को उनकी रिहाई से राज्य में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और बीजेपी गठबंधन की हाल ही में बनी सरकार हिल गई थी।

मुफ्ती के समर्थन से भट की रिहाई को अलगाववादियों का भरोसा जीतने और कश्मीर मुद्दे पर उन्हें बातचीत में शामिल करने के प्रयास के रूप में देखा। भट के समर्थकों ने एक रैली में पाकिस्तानी झंडा फहराया और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए, जिसका नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी ने किया था। भट की रिहाई के 40 दिन बाद, भाजपा के विरोध के चलते उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ऊपर PSA के अंतर्गत लगभग 49 मामलें दर्ज हैं।

उनके वकीलों के अनुसार, 1990 से लेकर अब तक 39 बार PSA के तहत गिरफ्तार किए जाने का रिकॉर्ड है। वह 22 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। 1990 से, कश्मीर में सक्रिय मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर (MLJK) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने से पाकिस्तान-समर्थक राजनीतिक दलों का अंत हो गया है।

लेखक: पीरजादा आशिक

स्रोत : हिन्दू

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